" अपेक्षा और उपेक्षा " ये दो ऐसी घातक भावनाएं हैं, जो मजबूत से मजबूत सम्बंधों की जडें हिलाकर रख देती हैं!!!!! अपेक्षा और उपेक्षा में एक बारीक फर्क है एक देती दर्द है दूसरी सुखद क्षण है यदि तुम करते हो खुद से यह दोनों दूजें समझे तुमको बौना कर्म करो सही दिशा में दशायें तो क्षणभंगुर हैं बदलते मौसम का ज्वर हैं जिसके फेर में जीते दुर्बल हैं जो है ही नहीं सांसों में उस सन्निपात का नाम कायरों ने रखा डर है इसे मार भगाओ मन से भीतर घात से बाहर आओ पर कुतरे आसमानों ने शुरूआतें ऐसे ही होती यारों ।। संसार को जब भी हम अपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं तो संग पैदा होता है। जैसे ही उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं तो संग की भावना समाप्त हो जाती है। आसक्ति हटती है, अटैचमेंट टूटता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि कभी भी किसी की तरफ अपेक्षा की दृष्टि से मत देखना, बल्कि उपेक्षा की दृष्टि से देखना। कोई भी चीज जो मोह रही हो, उससे अटैच मत होईये। रास्ते में चलते हुए आपक...