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Showing posts from October, 2016

*पाप और पूण्य क्या है..??*

     *पाप और पूण्य क्या है..??*             *मुझे नही पता*     *मुझे तो बस ये ही पता है...,*      *जिस कार्य से किसी का*           *दिल दुःखे वो पाप..,*                    *और...*    *किसी के चेहरे पे हँसी आये..*                *वो पूण्य..*         _________________________________  *पूण्य क्या है..??* १. प्रस्तावना दैनिक जीवन में कर्म करते समय, हम उन कर्मों का फल पुण्य एवं पाप के रूप में भोगते हैं । पुण्य एवं पाप हमें अनुभव होनेवाले सुख और दुख की मात्रा निर्धारित करते हैं । अतएव यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पापकर्म से कैसे बचें । वैसे तो अधिकांश लोग सुखी जीवन की आकांक्षा रखते हैं; परन्तु जिन लोगों को आध्यात्मिक प्रगति की इच्छा है, वे यह जानने की जिज्ञासा रखते हैं कि क्यों मोक्षप्राप्ति के आध्यात्मिक पथ में पुण्य भी अनावश्यक हैं । २.  पुण्य एवं पाप क्या है ? पुण्य अच्छे कर्मों का फल है, जिनके कारण हम सुख अनुभव करते हैं । पुण्य वह विशेष ऊर्जा अथवा विकसित क्षमता है, जो भक्तिभाव से धार्मिक जीवनशैली का अनुसरण करने से प्राप्त होती है । उदाहरणार्थ मित्रों की आर्थिक सहायता करना अथवा परामर्श दे

जरुरी नही की हर समय जुबान पर भगवान् का नाम आए, वो लम्हा भी भक्ति का होता है जब इंसान-इंसान के काम आए..

जरुरी नही की हर समय जुबान पर भगवान् का नाम आए, वो लम्हा भी भक्ति का होता है जब इंसान-इंसान के काम आए.. ___________________________ दूध को दुखी करो तो दही बनता है दही को सताने से मक्खन बनता है मक्खन को सताने से घी बनता है. दूध से महंगा दही है, दही से महंगा मक्खन है, और मक्खन से महंगा घी है. किन्तु इन चारों का रंग एक ही है सफेद इसका अर्थ है बाऱ- बार दुख और संकट आने पर भी जो इंसान अपना रंग नहीं बदलता, समाज में उसका ही मूल्य बढ़ता है| ___________________________ तेरा मेरा करते एक दिन चले जाना है,        जो भी कमाया यही रह जाना है ! कर ले कुछ अच्छे कर्म,        साथ यही तेरे जाना है ! रोने से तो आंसू भी पराये हो जाते हैं,        लेकिन मुस्कुराने से... पराये भी अपने हो जाते हैं !        मुझे वो रिश्ते पसंद है, जिनमें  " मैं " नहीं  " हम " हो !!  इंसानियत  दिल में होती है, हैसियत में नही, उपरवाला कर्म देखता है, वसीयत नही.