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*मैदान में हारा हुआ फिर से जीत सकता है* *परंतु* *मन से हारा हुआ कभी जीत नहीं सकता।* *आपका आत्मविश्वास ही आपकी सर्वश्रेष्ठ पूँजी है।*

*वो कहते है कि शादी के लिये जोडियां ईश्वर स्वर्ग में ही बना देता है ....* यह सच है?? *पर ईश्वर की बनाई जोडियां एक ही जाति की क्यों होती हैं ??* *क्या ईश्वर 'जातिवादी' है ??* या फ़िर जातिवादीयों ने ही.... *ईश्वर* बनाया है... अब सोचिये. ______________________________ *मैदान में हारा हुआ फिर से जीत सकता है*                  *परंतु* *मन से हारा हुआ कभी जीत नहीं सकता।* *आपका आत्मविश्वास ही आपकी सर्वश्रेष्ठ पूँजी है।* ______________________________ ज्ञान को आगे रखकर कर्म (पुरुषार्थ) करना चाहिए- पुरुषार्थ से सारे कार्य सिद्ध होते है। आलस्य में जीवन बिताना, उसे नीरस, फीका बनाना है। आलस्य सब दुखों का मूल है। यह दरिद्रता लाता है और ऐश्वर्य ले जाता है। ईश्वर प्राप्ति के लिए जो पुरुषार्थ होता है, उसे परम पुरुषार्थ कहते है। लौकिक और परलौकिक सुख दोनो इसी में है अतएव मनुष्य  को पुरुषार्थी-उद्योगी, यत्नशील होना चाहिए।  जीवन एवं निर्माण को देखकर हम प्रसन्न होते हैं और मृत्यु एवं निर्माण को देखकर उदास। ऐसे क्यों? क्योकि हम इन दोनों क्रियाओं को भिन्न-भिन्न देखते है, जबकि यह दोनों क्रियाये एक ही ह