लाख जमाने भर की *डिग्रीयाँ* हो हमारे पास *अपनों* की तकलीफ़ नहीं पढ़ पाये तो *अनपढ़* है हम
लाख जमाने भर की * डिग्रीयाँ * हो हमारे पास * अपनों * की तकलीफ़ नहीं पढ़ पाये तो * अनपढ़ * है हम अकेले ही लड़नी होती है, जिंदगी की लड़ाई क्योंकि लोग सिर्फ तसल्ली देते है साथ नही। “ सही शिक्षक” और “सही सड़क” दोनों एक जैसे होते हैं खुद जहाँ है वहीं पर रहते हैं मगर दुसरो को उनकी मंजिल तक पहुंचा हीं देते हैं! *चूहा अगर पत्थर का हो तो* *सब उसे पूजते हैं* *मगर जिन्दा हो तो मारे बिना* *चैन नहीं लेते हैं* *साँप अगर पत्थर का हो* *तो सब उसे पूजते हैं* *मगर जिन्दा हो तो उसी वक़्त* *मार देते हैं* *माँ बाप अगर "तस्वीरों" में हो* *तो सब पूजते हैं* *मगर जिन्दा है तो कीमत नहीं* *समझते"* *बस यही समझ नहीं आता के* *ज़िन्दगी से इतनी नफरत क्यों* *और* *पत्थरों से इतनी मोहब्बत क्यों* *जिस तरह लोग मुर्दे इंसान को* *कंधा देना पुण्य समझते हैं* *काश" इस तरह' ज़िन्दा" इंसान*