मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है , तो....

*जिदंगी का खुबसूरत*
*लम्हा कौन सा होता है??*
       
*Fantastic Answer :*

*जब आपका परिवार आपको*
*दोस्त समझने लगे*
*और*
*आपका दोस्त आपको*
*"अपना परिवार"*








*परीक्षा हमेशा अकेले में होती हैं..*
*लेकिन उसका परिणाम सबके सामने होता है।*
*इसलिए कोई भी कर्म करने से पहले*
*परिणाम पर जरूर विचार करें ....*





आँखों से अंधा होना यह तो भाग्य की बात है मगर विवेक से अंधा होना यह दुर्भाग्य की बात है ।*

आंख के अंधे को जगत नजर नहीं आता मगर विवेक के अंधे को तीनों लोकों के नाथ नजर नहीं आते ।*

आँख से अंधा होना दयनीय है मगर विवेक से अंधा होना सोचनीय है।*

आँख ना हो तो केवल एक जन्म ख़राब होता है लेकिन विवेक के अभाव में तो जन्म-जन्मान्तर तक प्रभावित होते है ।

*पैसा लोगों की*
*हैसियत*
*बदल सकता है*
*औकात*
*नही..!!!*

  

आप अगर खुश रहना जानते हैं और लोगों से हंस कर मिलने की आदत रखते हैं, तो यह आपके व्यक्तित्व का बहुत बड़ा गुण है. इसकी बदौलत आप जीवन के हर छेत्र में लोगों के पसंदीदा हो सकते हैं....अगर आपमें यह गुण नहीं है, तो आप बेशक नापसंद किए जा सकते हैं ।

हर आदमी चाहता है कि एक खुश व्यक्ति के साथ अपना वक्त बिताए, उससे बतियाए....इसलिए जो जितना खुशमिजाज होता है, वह उतना ही पसंद किया जाता है, इसलिए आप भी खुश रहने का प्रयास करिए।

*"" जिसकी प्रसन्नता को संसार की विघ्न बाधाएँ छीन नहीं सके, वही सच्चा अमीर है ""*
                              
हर किसी को यही लगता है कि वह बहुत दुखी है, उसके जीवन में बहुत संघर्ष है, उसके लिये राह बहुत कठिन है....पर जैसा कहा कि सभी को ऐसा ही लगता है इसका मतलब है कि ‘"अपने "' को त्याग कर और "‘दूसरे’" को अपना कर हम सुखी नहीं हो सकते हैं ।
हम जहाँ हैं, जिस स्थिति में हैं वहीं अगर विश्वास का दामन थाम लें तो सुखी हो सकते हैं क्योंकि अतिसुख देने वाली मात्र एक आत्म विश्वास ही है ।

       
आज का आदमी मेहनत में कम और मुकद्दर में ज्यादा विश्वास रखता है। आज का आदमी सफल तो होना चाहता है मगर उसके लिए कुछ खोना नहीं चाहता है। वह भूल रहा है कि सफलताएँ किस्मत से नहीं मेहनत से मिला करती हैं।
       किसी की शानदार कोठी देखकर कई लोग कह उठते हैं कि काश अपनी किस्मत भी ऐसी होती लेकिन वे लोग तब यह भूल जाते हैं कि ये शानदार कोठी, शानदार गाड़ी उसे किस्मत ने ही नहीं दी अपितु इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत रही है। मुकद्दर के भरोसे रहने वालों को सिर्फ उतना मिलता है जितना मेहनत करने वाले छोड़ दिया करते हैं।
       किस्मत का भी अपना महत्व है। मेहनत करने के बाद किस्मत पर आश रखी जा सकती है मगर खाली किस्मत के भरोसे सफलता प्राप्त करने से बढ़कर कोई दूसरी नासमझी नहीं हो सकती है।
       दो अक्षर का होता है "लक", ढाई अक्षर का होता है "भाग्य", तीन अक्षर का होता है "नसीव" लेकिन चार अक्षर के शब्द मेंहनत के चरणों में ये सब पड़े रहते हैं।

अगर आप अच्छी याददाश्त के धनी हैं तो यह अच्छी बात है मगर कभी-कभी आपकी यही अच्छी याददाश्त आपके लिए गलत साबित हो जाती है। दुनियाँ में हर बार वही नहीं घटता जिसे याद रखा जा सके यहाँ कई बार वो भी घट जाता है जिसे भुलाना अनिवार्य हो जाता है।
       इस दुनियाँ में ऐसे भी लोग हैं जो मात्र यह याद कर-करके दुखी होने में लगे है कि पाँच साल पहले मेरा इतना-इतना नुकसान हो गया था, मेरा अपमान हो गया था अथवा मेरे साथ गलत व्यवहार किया गया था।
      इन पाँच-पाँच साल पुरानी घटनाओं को स्मरण कर रोने वालों को देखकर लगता है, काश अगर इनकी स्मरण शक्ति इतनी तेज न होती तो ये बेचारे फिर व्यर्थ में भूतकाल (बीते समय) का रोना न रोकर वर्तमान की खुशियों का आनन्द ले रहे होते।
       उस व्यर्थ को भुलाने का प्रयास करो जो आपको इस जीवन के आनन्द से वंचित करता है।
गीताजी कहती हैं भूतकाल में जो चला गया और भविष्य में जो मिलने वाला है उसके बारे में सोचकर वह आनन्द का अवसर न गंवाओ जो आपको वर्तमान में मिल रहा है।

          

विचार और दृष्टिकोण से ही जीवन का ताना बाना रचा हूआ है ,,
विचारों के चयन से ही प्रभु माया का खेल निर्भर है ,,आप के अन्दर सकरात्मक दृष्टिकोण और अच्छे विचार हैं तो आप ज्यादे सच्चे मन से अपने धर्म ,अर्थ ,कर्म पथ पर आनन्द पूर्वक जीवन जी रहे हैं ,,
तनावरहित ,,,लेकिन जैसे ही विचारों की अशुद्धि आती है तुरन्त माया भी उसी अनरूप वातावरण तैयार करती हूई मिलेगी ,,विचारों के चयन में प्रभु की भक्ति की शक्ति मायने रखती है ,,
विचार को सारगर्भित रूप देने के लिये ही धर्म बना है पंथ बना पूर्वजों का डर था कि आने वाला समय कहीं मनुष्य भटक न जाये इसलिये उन्होने धार्मिक ग्रन्थों की रचना कर डाली आप रामायण पढ़ डालिये संदेष जो छिपा है कर्तव्य पालन निष्ठा का न समझ में आये तो फिर ,,,,बेकार ही है ,,धर्म का मर्म केवल आप के मन को शुद्ध करने के लिये बना है
जिस व्यक्ति के पास आप होते हो अगर लगे इस व्यक्ति के पास आकर आपके अन्त:चित्त साफ और सपष्ट सकरात्मक दृष्टिकोण बनना प्रारम्भ हो गया अँहकार को अगर त्याग दें और वह व्यक्ति आपके मस्तिष्क के रन्ध रन्ध में आनन्द दे तो
सत्संगी है वो ,,वरना आप चार घण्टा सत्संग सुन रहे हों और विचारों में परिवर्तन ही न हो तो कोई मतलब नहीं ,,,

      
सच है दुनिया का तो काम ही है कहना। ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे... ‘"
अभिमानी हो गए।‘" नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे... ‘"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।‘" आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि.... ‘"ध्यान का नाटक कर रहा है‘"....चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि.... ‘"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"‘ और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि....‘"
किया हुआ भोगना ही पड़ता है।‘" ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है।*

दुनिया क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो भजन नहीं कर पाओगे। यह नियम है।*

*अंत मे दोस्तो*

मसला यह भी है इस ज़ालिम दुनिया का..;*
*कोई अगर अच्छा भी है तो वो अच्छा क्यों है..!*

*और.......*

चक्रव्यूह रचने वाले सारे अपने ही होते हैं.!*
*कल भी यही सच था और आज भी यही सच है.!*

संसार में कोई व्यक्ति यदि हमें अच्छा कहे तो क्या हम अच्छे हो जाएंगे ??? नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा...अगर हम बुरे हैं तो बुरे ही रहेंगे। अगर हम अच्छे हैं तो अच्छे ही रहेंगे , भले ही पूरी दुनियां हमें बुरा कहे। लोग निंदा करे तो मन में आनंद आना चाहिए। हम पाप नहीं करते , हम किसी को दुःख नहीं देते , फिर भी हमारी निंदा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए , प्रत्युत प्रसन्नता होने चाहिए। भगवान के द्वारा जो होता है , सब मंगलमय ही होता है। इसलिए मन के विरुद्ध बात हो जाए तो उसमें आनंद मनाना चाहिए।*

एक संत ने कहा है..... ""मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है , तो बिना प्रयत्न के ही मेरी उन पर कृपा हो गई , क्योंकि कल्याण चाहने वाले पुरुष तो दूसरों के संतोष के लिए अपने कष्टपूर्वक कमाए हुए धन का भी परित्याग कर देते हैं। मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ा।""*

     

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